नमस्कार दोस्तों आज हम बात करेंगे आदिवासी समुदाय के एक विशेष जाति बैगा जनजाति (baiga janjati) के बारे में।
दोस्तों बैगा जनजाति के बारे में आपने कभी ना कभी सुना होगा या फिर सोशल मीडिया या इंटरनेट के माध्यम से जाना होगा। अगर नहीं जाना होगा तो आप यह पूरा पढ़े इससे विशेष जानकारी आपको मिलेगा
बैगा जनजाति के निवास भौगोलिक क्षेत्र -
दोस्तों बैगा जनजाति के भौगोलिक स्तिथि के बारे में बात करें तो यह जनजाति मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्य में बहुलता से निवास करती है यह जनजाति अपने संस्कृति व अलग किस्म के परंपराओं के कारण विशेष रूप से पहचानी जाती है। यह जनजाति आदिम जनजाति के रूप में जाना जाता है। मध्यप्रदेश के मंडला व डिंडोरी जिले में यह जनजाति बहुलता से निवास करती है। मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के चाड़ा ग्राम के बारे में आपने सुना ही होगा अगर नहीं सुना होगा तो आज हम बताएंगे कि यह किसलिए प्रसिद्ध है चाड़ा ग्राम बैगा जनजाति के बहुलता के कारण बैगाचक नाम से प्रसिद्ध है, यहां आपको बैगा जनजाति के बारे में विस्तृत रूप से जानने को मिलेगा, उनका रहन सहन रीति रिवाज आदि। दोस्तों चाड़ा ग्राम के विशेषता के बारे में हम अलग से बात करेंगे। आज हम बैगा जनजाति के बारे में संक्षिप्त रूप से जानेंगे।
दोस्तों बैगा जनजाति के लोग बेहद सुडौल और मजबूत शारीरिक संरचना के होते हैं, इनका शरीर सांवला या काला रंग होता है बहुत ही कम विरले ही गोरे मिलते हैं।
दोस्तों फिर चलिए हम सबसे पहले उनके रहन सहन पर नजर डालते हैं
बैगा जनजाति का रहन सहन -
बैगा जनजाति प्रकृति और जंगलों के बीच निवास करना बेहद पसंद करती है, यह निवास करने के लिए अक्सर उन जगहों को चुनती है जो चारों तरफ से वनों से घिरी हो, बाहरी दुनिया से अलग प्रकृति के बीच रहना इनका मुख्य विशेषता है। दोस्तों लेकिन आज के बदलते आधुनिकता में इन्होंने खुद को दुनिया के साथ ढालना शुरू कर दिया। यह जनजाति अपने खान पान से लेकर आर्थिक रूप से भी वनों पर ही निर्भर रहती हैं। सादगी भरे जीवन जीना इन्हें बेहद पसंद है। दोस्तों बैगा जनजाति कच्चे मकानों में निवास करती है लेकिन इस दौर में कई जगह पक्के मकानों में रहना शुरू कर दिया है लेकिन बहुत कम ही।
बैगा जनजाति के रीति रिवाज -
दोस्तों बैगा जनजाति अपने रीतिरिवाज़ों के लिए अपना अलग पहचान रखती है, यह जनजाति पेड़ों और धरती की पूजा करती है, जंगलों में निवास करने के कारण जंगल को यह अपना मुख्य रूप से घर मानती है, इनके पूजा में साजा नामक पेड़ का विशेष स्थान है, शादी ब्याह, तीज त्यौहारों में साजा पेड़ का पूजन आवश्यक माना जाता है,
बैगा जनजाति का पहनावा या वेशभूषा -
दोस्तों बैगा जनजाति अपने पहनावे के लिए भी प्रचलित है, बैगा जनजाति आज भी अपने पारंपरिक कपड़ों में नजर आते हैं, बैगा जनजाति के पुरुष धोती और कमीज़ पहनते हैं, जिसे आमतौर पर लंगोट कहा जाता है, व औरतें घुटने तक साड़ी पहनती है जिसे उनके भाषा में लुगरा कहा जाता है, नई युवती लुगरा के साथ पोल्का भी पहनती हैं, आज कल नवयुवकों ने बाहरी दुनिया के समांतर पैंट शर्ट भी पहनना शुरू कर दिया है। व युवती तरह तरह के परिधान पहनना पसंद करती हैं।
दोस्तों बैगा जनजाति आभूषण पहनना बहुत पसंद करते हैं, आमतौर से यह जनजाति आभूषण पहने ही मिलते हैं।
बैगा जनजाति के आभूषण -
बैगा जनजाति विशेष तौर पर आभूषण के लिए भी जाने जाते हैं, इनके आभूषण सस्ते धातु के होते हैं, बैगा युवती हर तरह की पारंपरिक आभूषण पहनती हैं, पुरुषों में भी आभूषण पहनना खासा पसंद किया जाता है। महिलाएं गले में तरह तरह के अलग अलग रंगों के माला, पैरों में पायल, बाहों में नागमोरी, उंगलियों में अंगूठी, बालों में फीते या गजरे लगाती हैं, औरतें गले में एक विशेष प्रकार के आभूषण पहनती हैं जो मोटे धातु से बना होता है जिसे सूता कहा जाता है पहनती हैं, इसके अलावा वे सिक्कों के आकार के बने मोहर की मालाएं भी पहनती हैं।
दोस्तों बैगा युवक भी आभूषण पहनना पसंद करते हैं खास तौर पर वे लंबे बाल रखना पसंद करते हैं व आभूषणों में मालाएं पहनते हैं,
बैगा जनजाति व गोदना -
दोस्तों आपने गोदना के बारे में तो सुना ही होगा अगर नहीं सुना होगा तो आज जान लीजिए गोदना को आम भाषा में बैगा जनजाति का पारंपरिक टैटू भी कह सकते हैं, यह जनजाति के लिए एक आभूषण के समान है, बैगा महिलाएं अपने पूरे शरीर में गोदना बनवाती हैं,
औरतें अपने माथे से लेकर पूरे हाथ और पूरे पैर में इसे शौक से बनवाती है कई औरतें अपने पीठ व छाती में भी इसे बनवाती हैं। गोदना के बारे में उनका यह धारणा है कि यह स्वयं को सजाने के साथ साथ शरीर के दर्द से निजात मिलता है। बैगा पुरुष भी आभूषण के रूप में शरीर में गोदना बनवाते हैं।
बैगा जनजाति का खान पान -
बैगा जनजाति विशेष तौर पर अपने खान पान के लिए जंगलों पर आश्रित रहते हैं, कई तरह के फल फूल, कंद मूल, व भाजी के रूप में पत्तियों को खाने में शामिल किया जाता है, बैगा जनजाति के लोग शिकार करना भी पसंद करते हैं, लेकिन प्रतिबंधों के कारण आज शिकार करना बंद कर चुके हैं, यह जनजाति चूहों को भी शौक से खाते हैं, शिकार के लिए गुलेल व धनुष बाण उपयोग में लाया जाता है, पुरुष गुलेल अधिकांश समय अपने साथ ही रखते हैं, इस जनजाति का दैनिक रूप से खाना जिसे पेज कहा जाता है यह चावल या कोदो कुटकी, व ज्वार मक्के का पकाया हुआ तरल होता है,

दोस्तों आपने महुआ का नाम तो सुना ही होगा महुआ से तरल पेय बनाया जाता है जिसे नशे के लिए पिया जाता है बैगा जनजाति इसे विशेष रूप में पीते हैं, शादियों में महुआ से बने शराब को पूरे लोगों में बांटा जाता है, एवं अपने पूजन के समय भी इसे इष्टदेव कुलदेव को चढ़ाया जाता है।
जड़ी बूटी और बैगा जनजाति -
दोस्तों आपको यह जानना बेहद जरूरी है कि बैगा जनजाति के पास जड़ी बूटियों का बेहद विस्तृत जानकारी होता है, यह तमाम तरह के बीमारियों का इलाज अपने जड़ी बूटियों से ही कर लेते हैं, इनके जड़ी बूटी इतने असरदार होते हैं कि कई लोग इनके पास अपने बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं।
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