दोस्तों आज हम बात करेंगे आदिवासी समुदाय और उससे जुड़े अन्य रोचक बातों के बारे में - तो चलिए जानते हैं आदिवासी शब्द के बारे में जिसे अंग्रेजी में इंडिजियस ( indigenous ) कहते हैं
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग किया गया है,
आदिवासी समुदाय के प्रमुख जातियां -
आदिवासी समुदाय के प्रमुख जातियों में गोंड, भील, भिलाला, मुंडा, खड़ीया, धानका, हो, बोडो, कोल, कोली, फनात, बैगा, सहरिया, संथाल, कुड़मी, महतो, मीणा, उरांव, लोहरा, परधान, पारधी, आंध, टाकणकार आदि हैं।
आदिवासी समुदाय भारत देश के लगभग सभी राज्यों में निवास करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से बहुतायत में मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, उड़ीसा, राजस्थान में अधिक संख्या में निवास करते हैं, इन प्रदेशों में आदिवासी जनजातियों की बहुलता है,
व गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार आदि।।
भारतीय पूर्वोत्तर राज्य जैसे मिजोरम, नागालैंड आदि पूर्वोत्तरी में बहुल संख्या में हैं।
आदिवासी साम्राज्य इतिहास -
दोस्तों आदिवासी समाज का बेहद सम्पन्न और गर्व करने वाला इतिहास है,
आदिवासियों की संस्कृति -
आदिवासियों की संस्कृति प्रकृति प्रधान होती है, इनके संस्कृति में प्रकृति की सुंदरता और प्रकृति के सम्मान का मुख्य स्थान होता है, क्षेत्रीय रूप से इसमें विभिन्नता झलकती है, जैसे पूर्वोत्तरी व मध्य क्षेत्र राज्यों में कुछ विभिन्नता पाई जाती है।
आदिवासियों की वेशभूषा -
आदिवासियों की वेशभूषा अलग और बेहद आकर्षक होता है, लेकिन आज के आधुनिक काल में आदिवासी समुदाय ने स्वयं को दुनिया के साथ उसके वेशभूषा का अनुसरण करता आया है। अन्य समुदाय के साथ आज ज्यादा भिन्नता नहीं रही लेकिन कुछ ऐसे आदिवासी समूह या जातियां हैं जो आज भी उनका परिधान भिन्न होते हैं। जो अपने पारंपरिक वेशभूषा को संजोए हुए हैं। विशेष सामुदायिक कार्यक्रमों में आज भी आदिवासी अपने परिधान के वजह से अपना एक अलग स्थान प्रस्तुत करता है। भारत के अलग अलग आदिवासी जातियों में यह विभिन्नता साफ झलकता है, जैसे राजस्थान आदिवासियों का परिधान भिन्न होता है जबकि मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी समुदाय के लोगों का परिधान भिन्न होता है, यह विभिन्नता हर जातियों में अलग अलग होता है। पुरुषों में धोती कुर्ता बेहद पसंदीदा है, महिलाएं अधिकतर साड़ी का उपयोग करती हैं
आदिवासी परंपरा -
आदिवासी समुदाय के परंपरा की बात करें तो यह बेहद विस्तृत और बेहद आकर्षक है, इनके तरह तरह के तीज त्यौहारों, शादी ब्याह के आयोजनों में विशेष प्रकार के तरह तरह के परंपरा झलकती है, इनके अलग अलग जातियों व क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक आयोजन किए जाते हैं।
धनुष बाण का महत्व -
आदिवासी समुदाय के लिए तीर कमान का विशेष महत्व है, तीर कमान आज भी कई क्षेत्रों में परिधान के रूप में धारण किया जाता है, तीर कमान उनके लिए उनके संघर्ष और आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने का संकेत भी देता है, वर्तमान में इससे संबंधित " एक तीर एक कमान आदिवासी एक समान " नारा बेहद प्रचलित है।
आदिवासी समुदाय अपने विशेष कार्यक्रमों में आज भी अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग करता है जो बेहद मनभावक होते हैं आप जरूर इनके वाद्य यंत्रों का मजा लिया होगा जैसे मांदल, टिमकी, बांसुरी आदि।
आदिवासी समुदाय आज भी प्रकृति पर अधिक निर्भर रहने वाला समुदाय है, लेकिन संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के बाद आदिवासी समुदाय आज अन्य प्रशासनिक राजनीतिक व व्यापारिक क्षेत्र में अपना स्थान मुख्यता से सुनिश्चित करता आ रहा है। लेकिन एक आज बड़ा समूह आज भी आर्थिक पिछड़ेपन से गुजर रहा है, कई जगहों में आदिवासी विस्थापन या उनके जंगल जमीन अधिग्रहण किए जाने के कारण प्रभावित हुआ है, जिससे उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा है, आज एक बड़ा समूह आज कृषि पर निर्भर है, अपने पारंपरिक कृषि के वजह से आर्थिक रूप से आज भी पीछे है, लेकिन कई जगहों पर इसमें परिवर्तन आया है और नई कृषि तकनीकों का उपयोग इस समुदाय द्वारा किया जाता है।
आदिवासी समुदाय के बारे में आगे हम और भी विस्तार से जानेंगे। इनके अलग अलग समूहों के बारे में पृथक पृथक रूप से जानेंगे। व इनके विभिन्नताओं के बारे में बात करेंगे।।
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